जब इंसान से इंसान डरने लगे

लेखक : डॉक्टर मोहम्मद अलीम, संपादक, आइसीएन ग्रुप

नई दिल्ली। आज देश व्यापी लोक डाउन का पांचवां दिन है। यह सिलसिला अगले १५ अप्रैल तक जारी रहने वाला है। आज तक के आंकड़े के मताबिक भारत में अबतक तीस लोगों की मौत कोरोनावायरस से हो चुकी है और एक हजार से ज़्यादा लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। पूरी दुनिया में यह आंकड़ा तीस हजार को पार कर चुका है। बड़े बड़े शक्तिशाली देश इसके आगे पस्त दिखाई दे रहे हैं जैसे अमेरिका, फ्रांस, चाइना, इटली, स्पेन और इंग्लैंड वगैरह।

सोशल मीडिया पर भी दिन भर तरह तरह के मैसेजेस आते रहते हैं। कोई यह कहता है कि कयामत जल्दी आने वाली है क्योंकि पैगम्बर मोहम्मद की बताई बहुत सी पेशिंगोई सच साबित हो रही है। इसमें एक यह भी है कि हज का सिलसिला अचानक बंद हो जाएगा। बीबीसी हिंदी की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस साल मक्का मदीना में होने वाला सालाना हज नहीं होगा क्योंकि स्थिती अभी सामान्य होने की कोई उम्मीद नहीं है ! झूठे लोग ईमानदारी का स्वांग रचाएंगे और उन्हें सच्चा माना जाएगा। मक्कार, फरेबी और अयोग्य क़िस्म के लोग हुकूमत में आला ओहदों पर बैठेंगे और क़त्ल इतना आसान हो जाएगा कि न मारने वालों को पता होगा कि उन्हें क्यों क़त्ल किया गया और ना मारने वालों को एहसास होगा कि उसने अनजाने में किसी की जान ले ली है।

मौजूदा समय रह रह रह कर शिद्दत से यही एहसास कराता है कि हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जहां क़ातिल खुद को अनजान और बेकसूर साबित करने में लगे हैं और मारने वालों को यह पता ही नहीं कि उन्हें किस गलती की वजह से मौत के मुंह में जाना पड़ा है।

कॉरोना की महामारी और इससे देश भर में उपजी समस्या ने इस एहसास को और गहरा कर दिया है। अब तक की खबरों के मुताबिक बीस से अधिक लोग सिर्फ इसलिए मारे गए क्योंकि वे गरीब दिहाड़ी मजदूर थे और अचानक उन्हें बेरोज़गारी की दलदल में धकेल दिया गया। उनसे बड़ी बेदर्दी के साथ न केवल उनकी रोज़ी रोटी छीन ली गई बल्कि उन्हें भूके और बेसहारा सड़कों पर अपनी मौत आप मारने के लिए छोड़ भी दिया गया। और दुर्भाग्य से यह सब किया गया उन्हें बचाने के नाम पर। 

आज इंसान इंसान के करीब भी आने से डरने लगा है। हर कोई क़ातिल दिखाई देता है। किसी के पास आने की चाहत से ही हम घबरा उठते हैं। अगर कोई आपसे मुहब्बत और अकीदत से  आकर मिलने की कोशिश भी करे तो हम घबरा उठते हैं कि कहीं यह मौत का सौदागर तो नहीं। फोन पर बात कर के ही अपनी सामाजिक जिम्मेदारी पूरी कर लेना चाहते हैं।

दोस्तों। वह दिन दूर नहीं जब इससे भी भयावह स्थिति हमारे सामने हो और हम अपने आपसे भी भागने की कोशिश करें तो शायद भागने की कोई मुनासिब पनाहगाह ना मिल सके। इसलिए जो वक़्त मिला है उसे गनीमत समझिए और प्यार मुहब्बत के साथ जीना सीखिए।

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